Earlier, in my engineering days, I used to write poems in Hindi. But all those habits withered away with time. After a long gap, I have tried to write a poem. I know its bit kiddish, but hopefully you all will appreciate the effort.
एक इंसान को खुदा बुलाने की, हिमाकत कर बैठा हूँ !
इन समझदारों की दुनिया में, मैं एक अपराध कर बैठा हूँ !!
दुनिया कहती है, इंसान को इंसान रहने दो !
इंसान परेशान हैं, उसे परेशान रहने दो !!
किसी को ज़िन्दगी भर खुश रखने का, लिए अरमान बैठा हूँ !
इन समझदारों की दुनिया में, मैं एक अपराध कर बैठा हूँ !!
जहाँ एक इंसान का दर्द, दूसरे के लिए मज़ा हैं !
बेड़ियों में जकड़ा है, मिली मुझे ये कठोर सज़ा हैं !!
बस अब तो खुदा के इंतज़ार में, बेताब बैठा हूँ !
इन समझदारों की दुनिया में, मैं एक अपराध कर बैठा हूँ !!
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2 comments:
wow...ts awesome..didnt knw u write so well.. hats off 2 u... good goin... keep d spirit high.........
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